भावपाहुड गाथा 142
From जैनकोष
आगे सम्यक्त्व का महान्पना (माहात्म्य) कहते हैं -
जह तारयाण चंदो मयराओ मयउलाण सव्वाणं ।
अहिओ तह सम्मत्तो रिसिसावयदुविहधम्माणं ।।१४४।।
यथा तारकाणां चन्द्र: मृगराज: मृगकुलानां सर्वेषाम् ।
अधिक: तथा सम्यक्त्वं ऋषिश्रावकद्विविधधर्माणाम् ।।१४४।।
तारागणों में चन्द्र ज्यों अर मृगों में मृगराज ज्यों ।
श्रमण-श्रावक धर्म में त्यों एक समकित जानिये।।१४४।।
अर्थ - जैसे तारकाओं के समूह में चन्द्रमा अधिक है और मृगकुल अर्थात् पशुओं के समूह में मृगराज (सिंह) अधिक है, वैसे ही ऋषि (मुनि) और श्रावक - इन दो प्रकार के धर्मो में सम्यक्त्व है, वह अधिक है ।
भावार्थ - व्यवहार धर्म की जितनी प्रवृत्तियाँ हैं, उनमें सम्यक्त्व अधिक है, इसके बिना सब संसारमार्ग बंध का कारण है ।।१४४।।