भावपाहुड गाथा 159
From जैनकोष
आगे कहते हैं कि जिनके इसप्रकार विशुद्ध भाव हैं, वे सत्पुरुष तीर्थंकर आदि पद के सुखों को पाते हैं -
चक्कहररामकेसवसुरवरजिणगणहराइसोक्खाइं ।
चारणमुणिरिद्धीओ विसुद्धभावा णरा पत्ता ।।१६१।।
चक्रधररामकेशवसुरवरजिनगणधरादिसौख्यानि।
चारणमुन्यर्द्धी: विशुद्धभावा नरा: प्राप्ता: ।।१६१।।
चक्रधर बलराम केशव इन्द्र जिनवर गणपति ।
अर ऋद्धियों को पा चुके जिनके हैं भाव विशुद्धवर ।।१६१।।
अर्थ - विशुद्ध भाववाले ऐसे नर मुनि हैं, वह चक्रधर (चक्रवती, छह खंड का राजेन्द्र) राम (बलभद्र), केशव (नारायण, अर्द्धचक्री) सुरवर (देवों का इन्द्र) जिन (तीर्थंकर पंचकल्याणक सहित, तीनलोक से पूज्य पद) गणधर (चार ज्ञान और सप्तऋद्धि के धारक मुनि) इनके सुखों का तथा चारणमुनि (जिनके आकाशगामिनी आदि ऋद्धियाँ पाई जाती हैं) की ऋद्धियों को प्राप्त हुए ।
भावार्थ - पहिले इसप्रकार निर्मल भावों के धारक पुरुष हुए वे इसप्रकार के पदों के सुखों को प्राप्त हुए, अब जो ऐसे होंगे वे पावेंगे, ऐसा जानो ।।१६१।।