अच्युत
From जैनकोष
- कल्पवासी देवों का एक भेद तथा उनका अवस्थान - देखे स्वर्ग ५;
- कल्प स्वर्गों में १६वाँ स्वर्ग - देखे स्वर्ग ५;
- आरण अच्युत स्वर्ग का तृतीय पटल व इन्द्रक - देखे स्वर्ग ५;
- (महापुराण सर्ग/श्लोक)-पूर्व भव नं. ८ में महानन्द राजा का पुत्र हरिवाहन था (८२३७) पूर्व भव नं. ७ में सूकर बना (८/२२९) पूर्व भव नं. ६ में उत्तरकुरु में मनुष्य पर्याय प्राप्त की (९/९०) पूर्व भव नं. ५ में ऐशान स्वर्ग में मणिकुण्डल नामक देव हुआ (९/१८७) पूर्व भव नं. ४ में नन्दिषेण राजा का पुत्र वरसेन हुआ। (१०/१५०) पूर्व भव नं. ३ में विजय नामक राजपुत्र हुआ (११/१०) पूर्व भव नं. २ में सर्वार्थसिद्धि में अहमिन्द्र हुआ (११/१६०) वर्तमान भव में ऋषभनाथ भगवान्का पुत्र तथा भरत का छोटा भाई (१६/४) भरत द्वारा राज्य माँगा जानेपर विरक्त हो दीक्षा धारण कर ली (३४/१२६) भरत के मुक्ति जाने के बाद मुक्ति को प्राप्त किया (४७/३९९) इन का अपर नाम श्रीषेण था (४७/३७२-३७३)।