अरति प्रकृति
From जैनकोष
सर्वार्थसिद्धि अध्याय संख्या ८/९/३८५/१३ यदुदयाद्देशादिप्वौत्सुक्यं सा रतिः। अरतिस्तद्विपरीता।
= जिसके उदयसे देश आदिमें उत्सुकता होती है, वह रति है। अरति इससे विपरीत है।
( राजवार्तिक अध्याय संख्या ८/९/४/५७४/१७) (धवला पुस्तक संख्या १२/४,२,८,१०/२८५/६)