असंमोह
From जैनकोष
( योगसार अधिकार संख्या ८/८२,८६) बुद्धिमक्षाश्रियां तत्र ज्ञानमार्गम पूर्वकं। तदेव सदनुष्ठानमसंमोहं विदो विदुः ।।८२।। सन्त्यसंमोहहेतूनि कर्माण्यत्यन्तशुद्धितः। निर्वाणशर्मदायी निभवातीताध्वगामिनाम् ।।८६।।
= इन्द्रियाधीन बुद्धिको जो ज्ञान आगमपूर्वक व सदनुष्ठान (आचारण) पूर्वक होता है, वह ज्ञान ही असंमोह है ।।८२।। असंमोहके हेतु अत्यन्त शुद्ध वे कर्म हैं जो कि भवसे अतीत निर्वाण सुखको देनेवाले हैं ।।८६।।