पर्णलध्वी
From जैनकोष
एक विद्या । इससे पत्तों के समान शरीर हल्का और छोटा बनाया जाता है । यह विद्या आकाश से नीचे इच्छित स्थान पर उतरने में सहायक होती है । यह विद्या वसुदेव और भामण्डल को प्राप्त थी । श्रीपाल इसी विद्या के द्वारा रत्नावर्त पर्वत पर गये थे । महापुराण 47. 21-22, 62.398,70.258-259 महापुराण 26. 129 हरिवंशपुराण 19.113, पांडवपुराण 11. 24