अंत्यकल्याणक
From जैनकोष
तीर्थंकरों का पाँचवाँ निर्वाण कल्याणक । इसमें चारों निकायों के देव परिवार सहित आकर तीर्थंकर की पूजा करते हैं । तत्पश्चात् प्रभु का शरीर पवित्र और निर्वाण का साधक है ऐसा जानकर वे तीर्थंकर की देह को बड़ी विभूति के साथ पालकी में विराजमान करते हैं तथा सुगन्धित द्रव्यसमूह से पूजकर अपने रत्नमुकुटधारी मस्तक से नमन करते हैं । इसके पश्चात् अग्निन्द्रकुमार देव के मुकुट से उत्पन्न अग्नि से तीर्थंकर का शरीर दग्ध हो जाता है । इन्द्र आदि देव उस भस्म को अपने निर्वाण का साधक मानकर सर्वाङ्ग में लगाते हैं । वीरवर्द्धमान चरित्र 19.230-245