कर्म निर्जरा व्रत
From जैनकोष
- विधि
- दर्शनविशुद्धि के अर्थ आषाढ़ शु.१४;
- सम्यग्ज्ञान की भावना के अर्थ श्रावण शु.१४;
- सम्यक्चारित्र की भावना के अर्थ भाद्रपद शु.१४;
- सम्यक्तप की भावना के अर्थ आसौज (क्वार) शु.१४। इन चार तिथियों के चार उपवास।
- जाप्य मन्त्र--
- नं. १ के लिए ‘ॐ ह्रीं दर्शनविशुद्धये नम:’;
- नं.२ के लिए ‘ॐ ह्रीं सम्यग्ज्ञानाय नम:’;
- नं.३ के लिए ‘ॐ ह्रीं सम्यक्चारित्राय नम:’; और
- नं.४ के लिए ‘ॐ ह्रीं सम्यक्तपाय नम:’। उस उस दिन उस-उस मन्त्र का त्रिकाल जाप्य करना। (व्रत-विधान संग्रह/पृ.९५), (किशनसिंह क्रिया कोश)।