कर्मबंध
From जैनकोष
सुकृत (पुण्य) और विकृत (पाप) के भेद से द्विविध । इनमें सुकृत महापुराणर तथा विकृत कटु फलदायी होते हैं । सुकृतबन्ध का उत्कृष्टतम फल सर्वार्थसिद्धि में उत्पन्न होना और विकृतबन्ध का निकृष्टतम फल सातवें नरक में उत्पन्न होना है । इनमें सुकृतबन्ध का फल शम, दम, यम और योग से प्राप्त होता है तथा विकृतबन्ध का फल शम, दम, यम और योग के अभाव से मिलता है । ये दोनों जीव के अपने कर्मबन्ध के अनुसार होते हैं । इससे जीव दुःखी होता है । यह बन्ध राग और द्वेष से आत्मा के दूषित होने पर होता है और बड़ी कठिनाई से हटता है । इसके कारण ही यह जीव दुर्गतियों में अतिशय निन्दनीय दुःख पाता हे । महापुराण 11.207-208,219-220