कालानुयोग 08
From जैनकोष
८. <a name="8" id="8">अष्टकर्म के चतुर्बन्ध सम्बन्धी ओघ आदेश प्ररूपणा
नं. |
विषय |
नानाजीवापेक्षया |
एकजीवापेक्षया |
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विषय |
पद विशेष |
मूल प्रकृति |
उत्तर प्रकृति |
मूल प्रकृति |
उत्तर प्रकृति |
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१. |
प्रकृति |
ज.उ.पद |
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१/३३२-३६४/२३६-२४९ |
१/४१-८३/४५-६८ |
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भुजगारादि |
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हानि-वृद्धि |
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२. |
स्थिति |
ज.उ.पद |
२/१८७-२०३/११०-११८ |
३/५२२-५५४/२४३-२५६ |
२/६७-९६/४७-५८ |
२/१४६-२१६/३१४-३६५ |
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भुजगारादि |
२/३१९-३२५/१६६-१६९ |
३/७९५ /३७९-३८० |
२/२७५-२८०/१४८-१५१ |
३/७२०-७३२/३३३-३३९ |
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हानि-वृद्धि |
२/४०१-४०२/२०१-२०२ |
३/...(ताड़पत्र नष्ट) |
२/३६७-३६९/१८७-१८८ |
३/८७९-८८१/४१७-४१८ |
३. |
अनुभाग |
ज.उ.पद |
४/२४०-२५३/१०९-११६ |
५/४०५-४०९/२११-२१६ |
४/८०-११७/२६-४३ |
४/४७७-५५४/२३८-३१४ |
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भुजगारादि |
४/२९८-२९९/१३७-१३८ |
५/५३८-५४१/३०९-३१२ |
४/१७२- /१२६-१२७ |
५/४५७- /२४४ |
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हानि-वृद्धि |
४/३६५ /१६६ |
५/६२२ /३६७-३६८ |
४/३५७-३५८/१६२-१६३ |
५/३१५ /३६१ |
४. |
प्रदेश |
ज.उ.पद |
६/९४ /४८-५० |
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६/६०-८९/२८-४५ |
६/२२५-२४७/१३४-१५४ |
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भुजगारादि |
६/१३७-१३९/७३-७६ |
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६/१०४-१०६/५५-५७ |
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हानि-वृद्धि |
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