क्षेत्र - योग
From जैनकोष
- योग मार्गणा
प्रमाण |
मार्गणा |
गुण स्थान |
स्वस्थान स्वस्थान |
विहारवत् स्वस्थान |
वेदना व कषाय समुद्घात |
वैक्रियक समुद्घात |
मारणान्तिक समुद्घात |
उपपाद |
तैजस, आहारक व केवली समु० |
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नं. १ पृ. |
नं. २ पृ. |
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३४१ |
पाँचों मनोयोगी |
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त्रि×असं, ति/सं, म×असं |
त्रि×असं, ति/सं, म×असं |
त्रि×असं, ति/सं, म×असं |
त्रि×असं, ति/सं, म×असं |
त्रि×असं, ति/असं, म×असं |
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तैजस आहारक मूलोघ वत् |
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३४१ |
पाँचों वचन योगी |
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त्रि×असं, ति/सं, म×असं |
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त्रि×असं, ति/सं, म×असं |
त्रि×असं, ति/सं, म×असं |
त्रि×असं, ति/असं, म×असं |
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तैजस आहारक मूलोघ वत् |
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३४१-३४२ |
काय योगी सामान्य |
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सर्व |
त्रि×असं, ति/सं, म×असं |
सर्व |
त्रि×असं, ति/सं, म×असं |
सर्व |
मारणान्तिकवत् |
तीनों मूलोघ वत् केवल दण्ड समु |
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३४२-३४३ |
औदारिक काय योगी |
|
सर्व |
त्रि×असं, ति/सं, म×असं |
सर्व |
च/असं, म×असं |
सर्व |
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" प्रतर " |
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३४१-३४२ |
औदारिक मिश्र काय योगी |
|
सर्व |
|
सर्व |
|
सर्व |
मारणान्तिकवत् |
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|
३४३ |
वैक्रियक काय योगी |
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त्रि×असं, ति/सं, म×असं |
त्रि×असं, ति/सं, म×असं |
त्रि×असं, ति/सं, म×असं |
त्रि×असं, ति/सं, म×असं |
त्रि×असं, ति/अ सं, म×असं |
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३४४ |
वैक्रियक मिश्र काय योगी |
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त्रि×असं, ति/सं, म×असं |
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त्रि×असं, ति/सं, म×असं |
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३४५ |
आहारक काय योगी |
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च/असं, म×सं |
च/असं, म×सं |
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च/असं, म×असं |
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३४६ |
आहारक मिश्र काय योगी |
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च/असं, म×सं |
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३४६ |
कार्माण काय योगी |
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सर्व |
|
सर्व |
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सर्व |
प्रतर व लोक पूर्ण |
१०२ |
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पाँचों मनो योगी |
१ |
— |
— |
स्व ओघ वत् |
— |
— |
— |
— |
१०३ |
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२-३ |
— |
— |
मूलोघ वत् |
— |
— |
— |
— |
१०२-१०३ |
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पाँचों वचन योगी |
१-१३ |
— |
— |
मनोयोगी वत् |
— |
— |
— |
— |
१०३ |
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काय योगी सामान्य |
१ |
— |
— |
स्व ओघ वत् |
— |
— |
— |
— |
१०३-१०४ |
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२-१३ |
— |
— |
मूलोघ वत् |
— |
— |
— |
— |
१०४ |
|
औदारिक काय योगी |
१ |
— |
— |
स्व ओघ वत् |
— |
— |
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|
१०५ |
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२-४ |
त्रि/असं, सं, घ, म×असं |
त्रि/असं, सं, घ, म×असं |
त्रि/असं, सं, घ, म×असं |
त्रि/असं, सं, घ, म×असं |
त्रि/असं, म×असं |
|
|
१०५ |
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५-१३ |
— |
— |
मूलोघवत् |
— |
— |
— |
— |
१०६ |
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औदारिक मिश्र काय योगी |
१ |
सर्व |
|
सर्व |
|
सर्व |
मारणान्तिकवत् |
|
१०७ |
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२ |
च/असं, म×असं |
|
च/असं, म×असं |
|
|
मारणान्तिकवत् |
|
१०७ |
|
|
४ |
च/असं, म×सं |
|
च/असं, म×सं |
|
|
मारणान्तिकवत् |
|
१०८ |
|
|
१३ |
|
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|
|
मारणान्तिकवत् |
मूलोघ वत् केवल कपाट |
१०८ |
|
वैक्रियक काय योगी |
१ |
— |
— |
स्व ओघ वत् |
— |
— |
— |
— |
१०९ |
|
|
२-४ |
— |
— |
मूलोघ वत् |
— |
— |
— |
— |
१०९ |
|
वैक्रियक मिश्र काय योगी |
१-२ |
— |
— |
स्व ओध वत् |
— |
— |
— |
— |
१०९ |
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४ |
च/असं, म×असं |
|
च/असं, म×असं |
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|
मारणान्तिकवत् |
|
११० |
|
आहारक काय योगी |
६ |
— |
— |
स्व ओघ वत् |
— |
— |
— |
— |
११० |
|
आहारक मिश्र काय योगी |
६ |
— |
— |
स्व ओघ वत् |
— |
— |
— |
— |
११० |
|
कार्माण काययोगी |
१ |
— |
स्व ओघ वत् |
— |
— |
— |
— |
|
११० |
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|
२,४ |
च/असं, म×असं |
च/असं, म×असं |
|
|
|
च/असं, म×असं |
|
१११ |
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१३ |
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ओघ वत् प्रतर व लोकपूर्ण |