गोपुच्छा
From जैनकोष
(क्ष सा/भाषा/५९३)–(गुणश्रेणी क्रम को छोड़) जहा̐ विशेष (चय) घटता क्रम लीए̐ (अल्पबहुत्व) होइ तहा̐ गोपुच्छा संज्ञा है। (क्ष.सा/भाषा/५२४)–विवक्षित एक संग्रह कृष्टिविषै जो अन्तरकृष्टीनि के विशेष (चय) घटता क्रम पाइये है सो यहा̐ स्वस्थान गोपुच्छा कहिए है। और निचली विवक्षित संग्रह कृष्टि की अन्तकृष्टितै ऊपर की अन्य संग्रहकृष्टि की आदि कृष्टि के विशेष घटता क्रम पाइए है सो यहा̐ परस्थान गोपुच्छा कहिए।