चन्द्रप्रभ
From जैनकोष
अटम तीर्थंकर । भरतक्षेत्र स्थित चन्द्रपुर नगर के इक्ष्वाकुवंशी, काश्यपगोत्री राजा महासेन और रानी लक्ष्मणा के पुत्र । इनका गर्भावतरण-चैत्र कृष्णा पंचमी और जन्म शक्र योग मे पौष कृष्णा एकादशी को हुआ था । इनका वर्ण श्वेत था । जन्म से ही ये तीन ज्ञान के धारी हो गये थे । महापुराण 2.129, 54.163, 170-173, पद्मपुराण 1.7,20.63, हरिवंशपुराण 1.10, पांडवपुराण 1.3 ये तीर्थंकर सुपार्श्व के नौ सौ करोड़ सागर का समय बीत जाने पर जन्मे थे । इनकी आयु दस लाख पूर्व और शारीरिक ऊँचाई एक सौ पचास धनुष थी । महापुराण 54.178-179, पद्मपुराण 20.84,119 दो लाख पचास हजार पूर्व समय बीतने पर इनका राज्याभिषेक हुआ था एक दिन शरीर की नश्वरता पर उनके चिन्तन से वे विरक्त हो गये उन्होंने अपने पुत्र वरचन्द्र को राज्य में अभिषिक्त किया । पौष कृष्णा एकादशी के दिन अनुराधा नक्षत्र में एक हजार राजाओं के साथ ये दीक्षित हुए और इन्हें मन:पर्ययज्ञान प्राप्त हो गया । दूसरे दिन नलिन नगर में सोमदत्त नृप के यहाँ पारणा की थी । घातियाकर्मों को नाश कर फाल्गुन कृष्णा सप्तमी के दिन ये केवली हुए । ये चौतीस अतिशयों से युक्त अष्टप्रातिहायों से विभूषित थे । इनकी सभा में दत्त आदि तेरानवें गणधर, दो हजार पूर्वधारी, आठ हजार अवधिज्ञानी, दो लाख चार सौ उपाध्याय, दस हजार केवलज्ञानी, चौदह हजार विक्रिया ऋद्धिधारी, आठ हजार मनःपर्ययज्ञानी, सात हजार छ: सौ वादी मुनि तथा वरुणा आदि तीन लाख अस्सी हजार आर्यिकाएँ, तीन लाख श्रावक और पांच लाख श्राविकाएँ थी । अनेक देशों मे विहार कर इन्होंने अन्त में सम्मेदगिरि पर एक हजार मुनियों के साथ प्रतिमायोग धारण किया । एक मास तक सिद्धशिला पर स्थिर रहने के बाद फाल्गुन कृष्णा सप्तमी के दिन ज्येष्ठा नक्षत्र और अपरह्ण वेला मे सिद्ध हुए थे । महापुराण 54.195,214-278, पद्मपुराण 1.7, 20.44,61, 63, हरिवंशपुराण 60. 189, 385-387 सातवें पूर्वभव में ये पुष्करद्वीप सम्बन्धी पूर्वमेरु के पश्चिम में स्थित सुगन्ध देश के श्रीवर्मा नामक राजा थे पाचवें पूर्वभव में श्रीप्रभ विमान में श्रीधर नामक देव, चौथे में अलका देशस्थ-अयोध्या के अजितसेन नामक नृप, तीसरे में अच्युतेन्द्र, दूसरे में पूर्वधातकीखण्ड में मंगलावती देश के रत्नसंचय नगर के पद्मनाभ नामक नृप, पहले में वैजयन्त विमान में अहमिन्द्र हुए थे । महापुराण 54.73, 162