चारित्र शुद्धि व्रत
From जैनकोष
चारित्र के निम्न १२३४ अंगों के उपलक्ष में एक उपवास एक पारणा क्रम से ६ वर्ष, १० मास ८ दिन में १२३४ उपवास पूरे करे–(१) अहिंसाव्रत=१४ जीव समास×नवकोटि (मन, वचन, काय×कृत, कारित अनुमोदना=१२६। (२) सत्यव्रत=भय, ईर्ष्या, स्वपक्षपात, पैशुन्य, क्रोध, लोभ, आत्मप्रशंसा और परनिन्दा ये ८×९कोटि=७२। (३) अचौर्यव्रत=ग्राम, अरण्य, खल, एकान्त, अन्यत्र, उपधि, अमुक्त, पृष्ठ ग्रहण ऐसे ८ पदार्थ×९ कोटि =७२। (४) ब्रह्मचर्य=मनुष्यणी, देवांगना, तिर्यंचिनी व अचेतनी ये चार स्त्रियाँ×९ कोटि×५ इन्द्रिय=१८०। (५) परिग्रह त्याग=२४ प्रकार परिग्रह×९कोटि=२१६। (६) गुप्ति=३×९कोटि=२७। (७) समिति ईर्या, आदान-निक्षेपण व उत्सर्ग ये ३×९ कोटि=२७+भाषा समिति के १० प्रकार सत्य×९ कोटि =९०+एषणा समिति के ४६ दोष×९ कोटि =४१४=१२३४ ओं ह्रीं अ सि आ उ सा चारित्रशुद्धिव्रतेभ्यो नम: इस मंत्र का त्रिकाल जाप्य करे (ह.पु./३४/१००-११०), (व्रत विधान संग्रह/पृ.५९)।