चैत्यालय
From जैनकोष
जिन-मन्दिर । इनके ऊपर आवागमन रूप अविनय करने से विद्याधरों के विमान रुक जाते हैं । पाण्डुक वन के जिनालयों की चारों दिशाओं मे चार द्वार होते हैं । दशों दिशाओं में एक सहस्र अस्सी ध्वजाएँ लहराती हैं । इसके आगे एक विशाल सभा मण्डप, उसके आगे प्रेक्षागृह, कूप, चैत्यवृक्ष और पर्यकासन प्रतिमा होती है । इसकी पूर्व दिशा में जलचर जीवों से रहित एक सरोवर रहता है । ये धार्मिक और सामाजिक संस्कति के केन्द्र रहे हैं । पद्मपुराण 5.33, हरिवंशपुराण 4.61, 5.366-372 महापुराण में इसे जिनालय कहा है । महापुराण 6.179-193, 7.272-290