जंतु
From जैनकोष
म.पु./२४/१०३,१०५ जीवा प्राणी च जन्तुश्च क्षेत्रज्ञ: पुरुषस्तथा। पुमानात्मान्तरात्मा च ज्ञो ज्ञानीत्यस्य पर्यया:।१०३। जन्तुश्च जन्मभाक् ।१०५।=जीव, प्राणी, जन्तु, क्षेत्रज्ञ, पुरुष, पुमान्, आत्मा, अन्तरात्मा, ज्ञ और ज्ञानी ये सब जीव के पर्यायवाचक नाम हैं।१०३। क्योंकि यह बार बार अनेक जन्म धारण करता है, इसलिए इसे जन्तु कहते हैं।१०५।
स.सा./२/९० भव्याभव्यविभेदेन द्विविधा: सन्ति जन्तव:।=भव्य और अभव्य के भेद से जन्तु या जवी दो प्रकार के है।
गो.जी./जी.प्र./३६५/७७९/११ चतुर्गतिसंसारे नानायोनिषु जायत इति जन्तु: संसारी इत्यर्थ:। =चतुर्गतिरूप संसार की नाना योनियों में जन्म धारण करता है, इसलिए संसारी जीव को जन्तु कहा जाता है। (ध.१/१,१,२/१२०/२)।