त्रिवर्गवाद
From जैनकोष
त्रिवर्गवाद का लक्षण
ध./९/४,१,४५/गा.८०/२०८ एक्केक्कं तिण्णि जणा दो द्दो यण इच्छदे तिवग्गम्मि। एक्को तिण्णि ण इच्छइ सत्तवि पावेंति मिच्छत्तं।८०। =तीनजन त्रिवर्ग अर्थात् धर्म, अर्थ और काम में एक-एक की इच्छा करते हैं। दूसरे तीन जन उनमें दो-दो की इच्छा करते हैं। कोई एक तीन की इच्छा नहीं करता है। इस प्रकार ये सातों जन मिथ्यात्व को प्राप्त करते हैं।