आवश्यकापरिहाणि
From जैनकोष
सर्वार्थसिद्धि अध्याय संख्या ६/२४/३३९/४ षण्मामावश्यकक्रियाणां यथाकालप्रवर्तमानवश्यकापरिहाणि।= छहा आवश्यक क्रियाओंका (बिना नागा) यथा काल करना आवश्यकापरिहाणि है।( राजवार्तिक अध्याय संख्या ६/२४/११/५३०/१५), (धवला पुस्तक संख्या ८/३,४१/८५/३), (चारित्रसार पृष्ठ संख्या ५६/३); (भावपाहुड़ / मूल या टीका गाथा संख्या ७७)२. एक आवश्यकापरिहाणिमें शेष १५ भावोंका समावेशधवला पुस्तक संख्या ८/३,४१/८५/४ तीए आवासयापरिहीणदाए एक्काए वि तित्थयरणामकमस्स बंधो होदि। ण च एत्थ सेसकारणाणामभावो ण च, दंसणविसुद्दि (आदि) ...विणा छावासएसु णिरदिचारदा णाम संभवदि। तम्हा एदं तित्थयरणामकम्मबंधस्स चउत्थकारणं।= उस एक ही आवश्यकापरिहीनतासे तीर्थंकर नामकर्मका बन्ध होता है। इसमें शेष कारणोंका अभाव भी नहीं हैं, क्योंकि दर्शनविशुद्धि (आदि) ...के बिना छह आवश्यकोंमें निरतिचारता समभव ही नहीं है।३. अन्य सम्बन्धित विषय• एक आवश्यकापरिहाणिसे ही तीर्थंकरत्वका बन्ध सम्भव है - दे. भावना २• साधुको आवश्यक कर्म नित्य करनेका उपदेश - दे. कृतिकर्म २• श्रावकको आवश्यककर्म नित्य करनेका उपदेश - दे. श्रावक ४• साधुके दैनिक कार्यक्रम - दे. कृतिकर्म