द्वैत
From जैनकोष
(पं.वि./४/३३) बन्धमोक्षौ रतिद्वेषौ कर्मात्मानौ शुभाशुभौ। इति द्वैताश्रिता बुद्धिरसिद्धिरभिधीयते। =बन्ध और मोक्ष, राग और द्वेष, कर्म और आत्मा, तथा शुभ और अशुभ, इस प्रकार की बुद्धि द्वैत के आश्रय से होती है।
- द्वैत व अद्वैतवाद का विधि निषेध व समन्वय― देखें - द्रव्य / ४ ।