नव नारद निर्देश
From जैनकोष
नव नारद निर्देश
१. वर्तमान नारदों का परिचय
क्रम |
१. नाम निर्देश |
२. उत्सेध |
३. आयु |
४.वर्तमान काल |
५. निर्गमन |
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१.ति.प./४/१४६९ २.त्रि.सा./ ८३४ ३. ह.पु./६०/५४८ |
ति.प./४/ १४७१ |
ह.पु./६०/ ५४९ |
१.ति.प./४/१४७१ २.ह.पु./६०/५४९ |
१.त्रि.सा./ ८३५ २.ह.पु./६०/ ५४९ |
१.ति.प./४/१४७० २.त्रि.सा./ ८३५ ३. ह.पु./६०/५५७ |
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१ |
२ |
सामान्य |
विशेष |
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१ |
भीम |
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उपदेश उपलब्ध नहीं है। |
तात्कालिक नारायणों के तुल्य है। |
उपदेश उपलब्ध नहीं है। |
तात्कालिक नारायणों के तुल्य है। |
नारायणों के समय में ही होते हैं। |
नारायणोंवत् नरकगति को प्राप्त होते हैं। |
महाभव्य होने के कारण परम्परा से मुक्त होते हैं। |
२ |
महाभीम |
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३ |
रुद्र |
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४ |
महारुद्र |
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५ |
काल |
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६ |
महाकाल |
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७ |
दुर्मुख |
चतुर्मुख |
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८ |
नरकमुख |
नरवक्त्र |
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९ |
अधोमुख |
उन्मुख |
२. नारदों सम्बन्धी नियम
ति.प./४/१४७० रुद्दावइ अइरुद्दा पावणिहाणा हवंति सव्वे दे। कलह महाजुज्झपिया अधोगया वासुदेव व्व।१४७०।
ये सब अतिरुद्र होते हुए दूसरों को रुलाया करते हैं और पाप के निधान होते हैं। सभी नारद कलह एवं महायुद्ध प्रिय होने से वासुदेव के समान अधोगति अर्थात् नरक को प्राप्त हुए।१४७०।
प.पु./११/११६-२६६ ब्रह्मरुचिस्तस्य कूर्मी नाम कुटुम्बिनी (११७) प्रसूता दारकं शुभं।१४५। यौवनं च...।१५३। ...प्राप्य क्षुल्लकचारित्रं जटामुकुटकुद्वहन् ...।१५५। कन्दर्पकौत्कुच्यमौखर्य्यात्यन्तवत्सल...।१५६। उवाचेति मरुत्वञ्च किं प्रारब्धमिदं नृप। हिंसन् ...प्राणिवर्गस्य द्वारं...।१६१। नारदोऽपि तत: कांश्चिन्मुष्टिमुद्गरताडनै:...।२५७। श्रुत्वा रावण: कोपमागत:...।२६४। व्यमोचयन् दयायुक्ता नारदं शत्रपञ्जरात् ।२६६। = ब्रह्मरुचि ब्राह्मण ने तापस का वेश धारण करके इसको (नारद को) उत्पन्न किया था। यौवन अवस्था में ही क्षुल्लक के व्रत लिये।१५३। कन्दर्प व कौत्कुच्य प्रेमी था।१५६। मरुत्वान् यज्ञ में शास्त्रार्थ करने के कारण (१६०) पीटा गया।२५६। रावण ने उस समय रक्षा की।२६६। (ह.पु./४२/१४-२३) (म.पु./६७/३५९-४५५)।
त्रि.सा./८३५ कलहप्पिया कदाइंधम्मरदा वासुदेव समकाला। भव्वा णिरयगदिं ते हिंसादोसेण गच्छंति।८३५। = ये नारद कलह प्रिय हैं, परन्तु कदाचित् धर्म में भी रत होते हैं। वासुदेवों (नारायणों) के समय में ही होते हैं। यद्यपि भव्य होने के कारण परम्परा से मुक्ति को प्राप्त करते हैं, परन्तु हिंसादोष के कारण नरक गति को जाते हैं।८३५। (ह.पु./६०/५४९-५५०)।