नव प्रतिनारायण निर्देश
From जैनकोष
नव प्रतिनारायण निर्देश
१. नाम व पूर्वभव परिचय
क्रम |
म.पु./सर्ग/श्लो. |
१. नाम निर्देश |
२. कई भव पहिले |
३. वर्तमान भव के नगर |
||||
१. ति.प./४/१४१३,५१९ २. त्रि.सा./८२८ ३. प.पु./२०/२४४-२४५ ४. ह.पु./६०/२९१-२९२ ५. म.पु./पूर्ववत् |
म.पु./पूर्ववत् |
प.पु./२०/२४२-२४३ म.पु./पूर्ववत् |
||||||
सामान्य |
सं. |
विशेष |
नाम |
नगर |
प.पु. |
म.पु. |
||
१ |
५७/७२,७३ ८७-८८,९५ |
अश्वग्रीव |
|
|
विशाखनन्दि |
राजगृह |
अलका |
अलका |
२ |
५८/६३,९० |
तारक |
|
|
विन्ध्यशक्ति |
मलय |
विजयपुर |
भोगवर्धन |
३ |
५९/८८,९९ |
मेरक |
५ |
मधु |
चण्डशासन |
श्रावस्ती |
नन्दनपुर |
रत्नपुर |
४ |
६०/७०,८३ |
मधुकैटभ |
५ |
मधुसूदन |
राजसिंह |
मलय |
पृथ्वीपुर |
वाराणसी |
५ |
६१/७४,८३ |
निशुम्भ |
५ |
मधुक्रीड़ |
|
|
हरिपुर |
हस्तिनापुर |
६ |
६५/१८०-१८९ |
बलि |
५ |
निशुम्भ |
मन्त्री |
|
सूर्यपुर |
चक्रपुर |
७ |
६६/१०९-१११,१२५ |
प्रहरण |
३ ५ |
प्रह्लाद बलीद्र |
नरदेव |
सारसमुच्चय |
सिंहपुर |
मन्दरपुर |
८ |
६८/११-१३,७२८ |
रावण |
३ |
दशानन |
|
|
लंका |
लंका |
९ |
७१/१२३ |
जरासंघ |
|
|
|
|
राजगृह |
|
२. वर्तमान भव परिचय
क्रम |
म.पु./सर्ग/श्लो. |
४. तीर्थ |
५. शरीर |
६. उत्सेध |
७. आयु |
८. निर्गमन |
||||
ति.प./४/१३७१ |
१.ति.प./४/१४१८ २. त्रि.सा./८२९ ३.ह.पु./६०/३१०-३११ |
१.ति.प./४/१४२२ २. त्रि.सा./८३० ३.ह.पु./६०/३२०-३२१ ४. म.पु./पूर्ववत् |
१.ति.प./४/ १४३८ २.त्रि.सा./ ८३२-८३३ ३.म.पु./ पूर्ववत् |
|||||||
वर्ण |
संहनन |
संस्थान |
सामान्य धनुष |
विशेष ह.पु. |
सामान्य वर्ष |
विशेष म.पु. |
||||
१ |
५७/७२-७३ ८७-८८ |
देखें - तीर्थंकर |
ति.प.―स्वर्णवर्ण; म.पु.–× |
समचतुरस्र संस्थान |
वज्र ऋषभ नाराच संहनन |
८० |
|
८४ लाख वर्ष |
|
सप्तम नरक |
२ |
५८/६३,९० |
७० |
|
७२ लाख |
|
षष्टम नरक |
||||
३ |
५९/८८,९९ |
६० |
|
६० लाख |
|
षष्ठ (३ सप्तम) |
||||
४ |
६०/७०,८३ |
५० |
४० |
३० लाख |
|
षष्ठम नरक |
||||
५ |
६१/७४,८३ |
४५ |
५५ |
१० लाख |
|
षष्ठम नरक |
||||
६ |
६५/१८०,१८९ |
२९ |
२६ |
६५००० |
|
षष्ठम नरक |
||||
७ |
६६/१०९-१११,१२५ |
२२ |
|
३२००० |
|
पंचम नरक |
||||
८ |
६८/११-१३,७२८ |
१६ |
|
१२००० |
१४००० |
चतुर्थ नरक |
||||
९ |
७१/१२३ |
१० |
|
१००० |
|
तृतीय नरक |
३. प्रति नारायणों सम्बन्धी नियम
ति.प./४/१४२३ एदे णवपडिसत्तु णवाव हत्थेहिं वासुदेवाणं। णियचक्केहि रणेसुं समाहदा जंति णिरयखिदिं।१४२३।
ये नौ प्रतिशत्रु युद्ध में नौ वासुदवों के हाथों से निज चक्रों के द्वारा मृत्यु को प्राप्त होकर नरक भूमि में जाते हैं।१४२३।
देखें - शलाका पुरुष / १ / ४ ,५ दो प्रतिनारायणों का परस्पर में मिलान नहीं होता। एक क्षेत्र में एक काल में एक ही प्रतिनारायण होता है। इनका शरीर दाढ़ी मूँछ रहित होता है।