निर्देश
From जैनकोष
- निर्देश का लक्षण
स.सि./१/७/२२/३ निर्देश: स्वरूपाभिधानम् । =किसी वस्तु के स्वरूप का कथन करना निर्देश है।
रा.वा./१/७/.../३८/२ निर्देशोऽर्थावधारणम् । =पदार्थ के स्वरूप का निश्चय करना निर्देश है। ध.१/१,१,८/१६०/१ निर्देश: प्ररूपणं विवरणं व्याख्यानमिति यावत् ।
ध.३/१,२,१/८/९ सोदाराणं जहा णिच्छयो होदि तहा देसो णिद्देसो। कुतीर्थपाखण्डिन: अतिशय्य कथनं वा निर्देश:। =- निर्देश, प्ररूपण, विवरण और व्याख्यान ये सब पर्यायवाची शब्द हैं।
- जिस प्रकार के कथन करने से श्रोताओं को पदार्थ के विषय में निश्चय होता है, उस प्रकार के कथन करने को निर्देश कहते हैं। अथवा कुतीर्थ अर्थात् सर्वथा एकान्तवाद के प्रस्थापक पाखण्डियों को उल्लंघन करके अतिशय रूप कथन करने को निर्देश कहते हैं।
- निर्देश के भेद
ध.१/१,१,८/१६०/२ स द्विविधो द्विप्रकार: ओघेन आदेशेन च। =वह निर्देश ओघ व आदेश की अपेक्षा दो प्रकार का है। [ओघ व आदेश के लक्षण (दे०वह वह नाम)]।