निसर्गक्रिया
From जैनकोष
आस्रव बढ़ाने वाली पच्चीस क्रियाओं में सत्रहवीं क्रिया । इस क्रिया से पापोत्पादक वृत्तियों को अच्छी तरह समझ लिया जाता है हरिवंशपुराण 58.75
आस्रव बढ़ाने वाली पच्चीस क्रियाओं में सत्रहवीं क्रिया । इस क्रिया से पापोत्पादक वृत्तियों को अच्छी तरह समझ लिया जाता है हरिवंशपुराण 58.75