परघातनामकर्म
From जैनकोष
स. सि./८/११/९१/४ यन्निमित्तः परशस्त्रादेर्व्याघातस्तत्परघातनाम। = जिसके उदय से परशस्त्रादिक का निमित्त पाकर व्याघात होता है, वह परघात नामकर्म है। (रा.वा./८/११/१४/५७८/३); (गो.क./जी.प्र./३३/२९/१९)।
ध. ६/१, ९-१, २८/५९/७ परेषां घातः परघातः। जस्स कम्मस्स उदएण परघादहेदू सरीरे पोग्गला णिप्फज्जंति तं कम्मं परघादं णाम। तं सिंह-सप्पदाढासु विसं, विच्छियपुंछे परदुखहेउपोग्गलोवचओ, सिंह-सप्पदाढासु विसं, विच्छियपुंछे परदुखहेउपोग्गलोवचओ, सिंह-वग्घच्छवलादिसु णहदंता, सिंगिवच्चणाहीधत्तूरादओ च परघादुप्पायया। = पर जीवों के घात को परघात कहते हैं। जिस कर्म के उदय से शरीर में पर को घात करने के कारणभूत पुद्गल निष्पन्न होते हैं, वह परघात नामकर्म कहलाता है। (ध./१३/५, ५, १०१/३६४/१३) जैसे - साँप की दाढों में विष, बिच्छू की पूँछ में पर दुःख के कारणभूत पुद्गलों का संचय, सिंह, व्याघ्र और छवल (शवल-चिता) आदि में (तीक्ष्ण) नख और दन्त तथा सिंगी, वत्स्यनाभि और धतूरा आदि विषैले वृक्ष पर को दुःख उत्पन्न करनेवाले हैं।
- परघात प्रकृति की बन्ध उदय सत्त्व प्ररूपणा तथा तत्सम्बन्धी शंका समाधान- दे.वह वह नाम।