परिशातन
From जैनकोष
ध.९/४,१,६९/३२७/१ तेसिं चेव अप्पिदसरीरपोग्ग-लक्खंधाणं संचएण विणा जा णिज्जरा सा परिसादणकदी णाम। = (पाँचों शरीरों में से) विवक्षित शरीर के पुद्गलस्कन्धों की संचय के बिना जो निर्जरा होती है, वह परिशातन कृति कहलाती है।
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