प्रभाचंद्र
From जैनकोष
इस नाम के अनेकों आचार्य हुए हैं -
- नन्दिसंघ बलात्कारगण की गुर्वावली के अनुसार लोकचन्द्र के शिष्य और नेमिचन्द्र के गुरु । समय - शक ४५३-४७८ (ई. ५३१-५५६) । ( देखें - इतिहास / ७ / २ ) ।
- अकलंक भट्ट (ई. ६२०-६८०) के परवर्ती एक आचार्य जिन्होंने गृद्धपिच्छ कृत तत्त्वार्थ सूत्र के अनसुार एक द्वितीय तत्त्वार्थ सूत्र की रचना की । (ती./३/३००) ।
- राष्टकूट के नरेश गोविन्द तृ. के दो ताम्रपत्रों (शक ७१९-७२४) के अनुसार आप तोरणाचार्य के शिष्य और पुष्पनन्दि के शिष्य थे । समय - लगभग शक ७१०-७५४ (ई. ७८८-८३२) । (जै. /२/११३) ।
- महापुराण के कर्ता जिनसेन (ई. ८१८-८७८) से पूर्ववर्ती जो कुमारसेन के शिष्य थे । कृति - न्याय का ग्रन्थ ‘चन्द्रोदय’ . समय - ई. ७९७ (ह.पु./प्र.८/पं. पन्ना लाल) ।
- नन्दिसंघ देशीयगण गोलाचार्य आग्नाय में आप पद्मनन्दि सैद्धान्तिक के शिष्य और आबिद्धकरण पद्मनन्दि कौमारदेव के सधर्मा थे । परीक्षामुख के कर्ता माणिक्यनन्दि आपके शिक्षा गुरु थे । कृतियें - प्रमेयकमल मार्तण्ड, न्याय कुमुद चन्द्र, तत्त्वार्थवृत्ति पद विवरण, शाकटायन न्यास, शब्दाम्भोज भास्कर, समाधितन्त्र टीका, आत्मानुशासन टीका, समयसार टीका, प्रवचनसार सरोज भास्कर, पञ्चास्तिकाय प्रदीप, लघु-द्रव्यसंग्रह वृत्ति, महापुराण टिप्पणी, गद्य कथाकोष, क्रिया-कलाप टीका और किन्हीं विद्वानों के अनुसार रत्नकरण्ड श्रावकाचार की टीका भी . समय - पं. महेन्द्र कुमार के अनुसार वि. १०३७-११२२; पं. कैलाश चन्द्र जी के अनुसार ई. ९५०-१०२० । ( देखें - इतिहास / ७ / ५ ); (जै/२/३४८), १/३८८); (ती./३/४९, ५०) ।
- नन्दिसंघ देशीयगण में मेघचन्द्र त्रैविद्य द्वि. के शिष्य और वीरनन्दि व शुभचन्द्र के सहधर्मा । ( देखें - इतिहास / ७ / ५ ) ।
- सेन गण के भट्टारक बाल चन्द्र के शिष्य । कृतियें - सिद्धान्तरसार की कन्नड़ टीका और पं. कैलाश चन्द जी के अनुसार रत्नकरण्ड श्रावकाचार की टीका । समय - वि. श. १३ (ई. ११८५-१२४३) ।
- नन्दि संघ बलात्कार गण की अजमेर गद्दी के अनुसार आप रत्न कीर्ति भट्टारक के शिष्य और पद्मनन्दि के शिष्य थे । समय - वि. श. १३ पूर्व अथवा वि. १३१०-१३८५ (ई. १२५३-१३२८) । ( देखें - इतिहास / ३ / ४ ) । ( देखें - इतिहास / ७ / ३ ) ।
- श्रुत मुनि (ई. १३४१, वि. १३९८) के शिक्षा गुरु । समय - वि. श. १४ का उत्तरार्ध (ई. शु. १४ पूर्व)। (जै./२/१९५/३४९) ।
- काष्ठासंघी आचार्य । गुरु परम्परा - हेमकीर्ति, धर्मचन्द्र, प्रभाचन्द्र, । कृति -तत्त्वार्थ रत्न प्रभाकर । समय - वि. १४८९ (ई. १४३२) । (ज. /२/३६९-३७०)
- नन्दिसंघ बलात्कार गण दिल्ली शाखा जो पीछे चित्तौड़ शाखा के रूप में रूपान्तरित हो गई । गुरु - जिनचन्द्र । समय - व. १५७१-१५८६ (ई. १५१४-१५२९) । ती./३/३८४) ।