प्रासुक
From जैनकोष
मू.आ./४८५ पगदा असओ जह्मा तह्मादो दव्वदात्ति तं दव्वं । पासुगमिदि । = जिसमें से जीव निकल गये हैं वह प्रासुक द्रव्य है ।
ध. ८/३, ४१/८७/५ पगदा ओसरिदा आसवा जम्हा तं पासुअं, अथवा जं णिखज्जं तं पासुअं । किं ? णाणदंसण-चरित्तादि । = जिससे आस्रवदूर हो गये हैं उसका नाम (वह जीव) प्रासुक है, अथवा जो निरवद्य है उसका नाम प्रासुक है । वह ज्ञानदर्शन व चारित्रादिक ही हो सकते हैं नि.सा./ता.वृ./६३ हरितकायात्मकसूक्ष्मप्राणिसंचारागोचरं प्रासुकमित्यभिहितम् । = हरितकायमय सूक्ष्म प्राणियों के संचार को अगोचर वह प्रासुक (अन्न) ऐसा शास्त्र में कहा है ।
- जलादि प्रासुक करने की विधि - देखें - जलगालन / १ / ४ ।
- वनस्पति आदि को प्रासुक करने की विधि- देखें - सचित्त / ६
- विहार के लिए प्रासुक मार्ग - देखें - विहार / १ / ७