बाधित
From जैनकोष
- बाधित विषय के भेद
प.मु./६/१५ बाधितः प्रत्यक्षानुमानागमलोकस्ववचनैः ।१५। = प्रत्यक्ष, अनुमान, आगम, लोक एवं स्ववचन बाधित के भेद से बाधित पाँच प्रकार है ।१५। (न्या.दी./३/६३/१०२/१४) ।
- बाधित के भेदों के लक्षण
प.मु./६/१६-२० तत्र प्रत्यक्षबाधितो यथा - अनुष्णोऽग्निर्द्रव्यत्वाज्ज-लवत् ।१६। अपरिणामी शब्दः कृतकत्वाद् घटवत् ।१७। प्रेत्यासुखप्रदो धर्मः पुरुषाश्रितत्वादधर्मवत् ।१८। शुचि नरशिरः कपालं प्राण्यङ्गत्वाच्छुंक्तिवत् ।१९। माता मे बन्ध्या पुरुषसंयोगेऽप्यगर्भवत्त्वात्प्रसिद्धबन्ध्यावत् ।२०। =- अग्नि ठण्डी है क्योंकि द्रव्य है जैसे जल । यह प्रत्यक्ष बाधित का उदाहरण है . क्योंकि स्पर्शन प्रत्यक्ष से अग्निकी शीतलता बाधित है ।१६। शब्द अपरिणामी है, क्योंकि वह किया जाता है जैसे ‘घट’, यह अनुमानबाधित का उदाहरण है ।१७। धर्म पर भव में दुःख देने वाला है क्योंकि वह पुरुष के अधीनहै जैसे अधर्म । यह आगम बाधित का उदाहरण है, क्योंकि यहाँ उदाहरण रूप ‘धर्म’ तो परभव में सुख देने वाला है ।१८। मनुष्य के मस्तक की खोपड़ी पवित्र है क्योंकि वह प्राणी का अंग है, जिस प्रकार शंख, सीप प्राणी के अंग होने से पवित्र गिने जाते हैं, यह लोकबाधितका उदाहरण है ।१९। मेरी माँ बाँझ है क्योंकि पुरुष के संयोग होने पर भी उसके गर्भ नहीं रहता । जैसे प्रसिद्ध बंध्या स्त्री के पुरुष के संयोग रहने पर भी गर्भ नहीं रहता । यह स्ववचनबाधित का उदाहरण है , क्योंकि मेरी माँ और बाँझ ये बाधित वचन हैं । २०/ (न्या.दी./३/६३/१०२/१४) ।