भद्रमित्र
From जैनकोष
म.पु./५९/श्लोक नं. सिंहपुर के राजा का मत्री इसके रत्न लेकर मुकर गया (१४८-१५१)। प्रतिदिन खूब रोने-चिल्लाने पर (१६५) राजा की रानी ने मत्री को जुए में जीतकर रत्न प्राप्त किये (१६८-१६९)। राजा ने इसकी परीक्षा कर इसके रत्न व मत्रीपद देकर उपनाम सत्यघोष रख दिया (१७१-१७३)। एक बार बहुत-सा धन दान दिया, जिसको इसकी माँ सहन न कर सकी। इसी के निदान में उसने इसे व्याघ्री बनकर खाया (१८८-१९१)। आगे चौथे भव में इसने मोक्ष प्राप्त किया–देखें - चक्रायुद्ध।