भागाभाग
From जैनकोष
कुल द्रव्य में से विभाग करके कितना भाग किसके हिस्से में आता है, इसे भागाभाग कहते हैं। जैसे एक समयप्रबद्ध सर्व कर्म प्रदेशों का कुछ भाग ज्ञानावरणीय को मिला, उसमें से भी चौथाई-चौथाई भाग मतिज्ञानावरणी को मिला। इसी प्रकार कर्मों के प्रकृति, स्थिति, अनुभाग व प्रदेशबन्ध में, उनके चारों प्रकार के सत्त्व में अथवा भुजगार व अल्पतर बन्धक जीवों आदि विषयों में यथायोग्य लागू करके विस्तृत प्ररूपणाएँ की गयी हैं। जिनके सन्दर्भों की सूची नीचे दी गयी है–
नं. |
प्रकृति विषयक |
स्थिति विषयक |
अनुभाग विषयक |
प्रदेश विषयक |
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मूल प्रकृति |
उत्तर प्रकृति |
मूल प्रकृति |
उत्तर प्रकृति |
मूल प्रकृति |
उत्तर प्रकृति |
मूल प्रकृति |
उत्तर प्रकृति |
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१ |
अष्ट कर्म बन्ध सम्बन्धी (म.बं./) |
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१ |
जघन्य उत्कृष्ट बन्ध― |
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२ |
जघन्य उत्कृष्ट बन्ध के स्वामित्व में― |
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३ |
भुजगारादि पदों के स्वामियों में― |
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४ |
वृद्धि हानि रूप पदों के स्वामियों में― |
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२ |
मोहनीय कर्म सत्त्व सम्बन्धी (क.पा.) |
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१ |
जघन्य उत्कृष्ट सत्त्व स्थानों के स्वामियों की अपेक्षा― |
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२ |
कर्म सत्त्वासत्त्व की अपेक्षा― |
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३ |
२८,२४,२३ आदि सत्त्व स्थानों की अपेक्षा― |
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४ |
भुजगारादि पदों के स्वामियों की अपेक्षा― |
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५ |
वृद्धि हानि रूप पदों के स्वामियों की अपेक्षा― |
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६ |
कषायों के सत्त्वासत्त्व की अपेक्षा― |
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- अन्य सम्बन्धित विषय
- जीवों का संख्या विषयक भागाभाग– देखें - संख्या / ३ / ४ -९।
- जघन्य-उत्कृष्ट योग स्थानों स्थित जीवों का ओघ व आदेश से भागाभाग।–दे०(ध.१०/९५/१)।
- प्रथमादि योग वर्गणाओं में जीव प्रदेशों का ओघ व आदेश से भागाभाग।–दे०(ध.१०/४४८/११)
- जघन्य-उत्कृष्ट अवगाहना स्थानों में स्थित जीवों का ओघ व आदेश से भागाभाग।–दे०(ध.११/२७/१९)।
- जघन्य उत्कृष्ट क्षेत्रों में स्थिति जीवों का ओघ व आदेश से भागाभाग।–दे०(ध.३२/१६)।
- २३ वर्गणाओं में परमाणुओं का भागाभाग–दे०(ध.१४/१६०-१६३)।
- पाँच शरीरों के जघन्य, उत्कृष्ट व उभय स्थिति में जीवों के निषेकों का भागाभाग।–दे० (ष.खं. १४ सू.३३१-३३९/३७०)।
- आठों कर्मों की मूलोत्तर प्रकृतियों के प्रकृतिरूप भेदों की, समय प्रबद्धार्थता व क्षेत्र प्रयास की अपेक्षा प्रमाण का परस्पर भागाभाग।–दे०(ष.खं.१२/९ सू.१-२१/५०१)।