मनोरमा
From जैनकोष
- ह.पु./१५/श्लोक नं. विजयार्ध पर मेघपुर के राजा पवनवेग की पुत्री थी।२७। इसका विवाह राजा सुमुख के जीव के साथ हुआ, जिसने पूर्व में इसका हरण कर लिया था।३३। पूर्व जन्म का असली पति जो उसके वियोग में दीक्षित होकर देव हो गया था, पूर्व वैर के कारण उन दोनों को उठाकर चम्पापुर नगर में छोड़ गया और इनकी सारी विद्याएँ हरकर ले गया। वहाँ उनके हरि नाम का पुत्र उत्पन्न हुआ जिसने हरिवंश की स्थापना की।३८-५८।
- वरांगचरित्र/सर्ग/श्लोक–राजा देवसेन की पुत्री थी। वरांग पर मोहित हो गयी।(१९/४०)। वरांग के साथ विवाह हुआ।(२०/४२)। अन्त में दीक्षा धारण की।(२९/१४)। तप के प्रभाव से स्त्रीलिंग छेद देव हुआ।(३१/११४)।