महाबल
From जैनकोष
- असुर जातीय एक भवनवासी देव–देखें - असुर।
- (म.पु. /सर्ग/श्लोक)–राजा अतिबल का पुत्र था।(४/१३३)। राज्य प्राप्त किया।(४/१५९)। जन्मोत्सव के अवसर पर अपने मन्त्री स्वयंबुद्ध द्वारा जीव के अस्तित्व की सिद्धि सुनकर आस्तिक हुआ।(५/८७)। स्वयंबुद्ध मन्त्री को आदित्यगति नामक मुनिराज ने बताया था कि ये दसवें भव में भरत क्षेत्र के प्रथम तीर्थंकर होंगे।(५/२००)। मत्री के मुख से अपने स्वप्नों के फल में अपनी आयु का निकट में क्षय जानकर समाधि धारण की।(५/२२६,२३०)। २२ दिन की सल्लेखनापूर्वक शरीर छोड़ (५/२४८-२५०)। ईशान स्वर्ग में ललितांग नामक देव हुए।(५/२५३-२५४)। यह ऋषभदेव का पूर्व भव नं. ९ है–देखें - ऋषभदेव।
- म.पु./५०/श्लोक–मंगलावती देश का राजा था।(२-३)। विमलवाहन मुनि से दीक्षा ले ११ अंग का पाठी हो तीर्थंकर प्रकृति का बन्ध किया।(१०-१२)। समाधिमरणपूर्वक विजय नामक अनुत्तर विमान में अहमिन्द्र हुआ।(१३)। यह अभिनन्दन्नाथ भगवान् का पूर्व भव वं. २ है।
- (म.पु. /६०/श्लोक) पूर्व विदेह के नन्दन नगर का राजा था।(५८)। दीक्षाधार।(६१)। संन्यास मरणपूर्वक सहस्रार स्वर्ग में देव हुआ।(६२)। यह सुप्रभ नामक बलभद्र का पूर्व भव नं. २ है।
- नेमिनाथपुराण के रचयिता एक जैन कवि। समय–(ई. १२४२)–(वरांगचरित्र/ प्र. २३/पं. खुशालचन्द)