मृदंगमध्य व्रत
From जैनकोष
इस व्रत की विधि दो प्रकार है−बृहत् व लघु ।
- बृहत् विधि-यंत्र में दिखाये अनुसार एक वृद्धि क्रम से १ से ९ पर्यंत और तत्पश्चात् एक हानि क्रम से ९ से १ पर्यंत, इस प्रकार कुल ८१ उपवास करे । मध्य के स्थानों में एक-एक पारणा करे । नमस्कार मंत्र का त्रिकाल जाप्य करे । (व्रतविधान संग्रह/पृ. ८०) ।
- लघु विधि−यन्त्र में दिखाये अनुसार एक वृद्धि क्रम से २ से ५ पर्यंत और तत्पश्चात् एक हानि क्रम से ५ से २ पर्यंत, इस प्रकार कुल २३ उपवास करे । मध्य के स्थानों में एक-एक पारणा करे । (ह. पु. /३४/६४-६५) ।