मेरुपंक्ति व्रत
From जैनकोष
अढ़ाई द्वीप में सुदर्शन आदि पाँच मेरु हैं (देखें - सुमेरु ) । प्रत्येक मेरु के चार-चार वन हैं । प्रत्येक वन में चार-चार चैत्यालय हैं । प्रत्येक वन के चार चैत्यालयों के चार उपवास व चार पारणा, तत्पश्चात् एक बेला एक पारणा करे । इस प्रकार कुल ८० उपवास, २० बेले और १०० पारणा करे । ‘‘ओं ह्नीं पंचमेरु सम्बन्धी अस्सीजिनालयेभ्यो नमः’’ अथवा ‘‘ओं ह्वीं (उस-उस मेरु का नाम) सम्बन्धी षोडशजिनालयेभ्यो नमः’’ इस मन्त्र का त्रिकाल जाप्य करे । (व्रत-विधान संग्रह)।