रत्नावली व्रत
From जैनकोष
इस व्रत की विधि तीन प्रकार से वर्णन की गयी है - उत्तम, मध्यम, व जघन्य ।
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बृहद् विधि− (ह. पु./३४/७६) । प्रथम १० बेला, १,२,३,४,५,६,७,८,९,१०,११,१२,१३,१४,१५,१६, इस प्रकार एक एक वृद्धि क्रम से १३६ उपवास करे । फिर ३४ बेला, १६,१५,१४, १३,१२,११,१०,९,८,७,६,५,४,३,२,१, इस प्रकार एक एक हानि क्रम से १३६ उपवास करे, १२ बेला । विधि - उपरोक्त रचनावत् पहले एक बेला व १ पारणा क्रम से १२ बेला करे, फिर एक उपवास १ पारणा, २ उपवास १ पारणा क्रम से १ वृद्धि क्रम से १६ उपवास तक करे, पीछे ३४ बेला, फिर १६ से लेकर एक हानि क्रम से १ उपवास तक करे, पीछे १२ बेला करे । बीच में सर्वत्र एक एक पारणा करे । जाप्य - नमस्कार मन्त्र का त्रिकाल जाप्य करे ।
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मध्यम विधि−एक वर्ष पर्यन्त प्रतिमास की शु. ३,५,८ तथा कृ. २,५,८ इन छह तिथियों में उपवास करे तथा नमस्कार मन्त्र का त्रिकाल जाप करे । (व्रत विधान सं./पृ. ७३)।
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जघन्य विधि−यन्त्र १,२,३,४,५,५,४,३,२,१ विधि−वृद्धि-हानि क्रम से उपरोक्त प्रकार ३० उपवास करे, बीच के ९ स्थान तथा अन्त में १ इस प्रकार १० पारणा करे । (ह. पु./३४/७२-७३)।