लिपिसंख्यानसंग्रह
From जैनकोष
गर्भान्वय-क्रियाओं में तेरहवीं क्रिया । इसमें शिशु को पाँचवें वर्ष में अक्षर-ज्ञान का आरम्भ किया जाता है । सामाजिक स्थिति के अनुसार सामग्री लेकर जिनेन्द्र-पूजा को जाती है । इसके पश्चात् अध्ययन कराने में कुशल व्रती गृहस्थ की शिशु को पढ़ाने के लिए नियुक्ति की जाती है । इस क्रिया में शब्दपारभागी भव, अर्थपारभागी भव, शब्दार्थसंबंधपारभागीभव मन्त्रों का उच्चारण किया जाता है । महापुराण 38.56, 102-103, 40.152