वज्रदंत
From जैनकोष
म. पु./सर्ग/श्लोक-पुण्डरीकिणी नगर का राजा था। (६/५८)। पिता यशोधर केवलज्ञानी हुए। (६/१०८)। वहाँ ही इन्हें भी अवधिज्ञान की उत्पत्ति हुई। (६/११०)। दिग्विजय करके लौटा। (६/१९२-१९४)। तो अपनी पुत्री श्रीमती को बताया कि तीसरे दिन उसका भानजा वज्रजंघ आयेगा और वह ही उसका पति होगा। (७/१०५)। अन्त में अनेकों रानियों व राजाओं के साथ दीक्षा धारण की। (८/६४-८५)। यह वज्रजंघ का ससुर था।−देखें - वज्रजंघ।