वज्रायुध
From जैनकोष
- म. पु./६३/श्लो−पूर्वविदेह के रत्नसंचय नामक नगर के राजा क्षेमंकर का पुत्र था।३७ - ३९। इन्द्र की सभा में इनके सम्यग्दर्शन की प्रशंसा हुई। एक देव बौद्ध का रूप धर परीक्षा के लिए आया।४८, ५०। जिसको इन्होंने वाद में परास्त कर दिया।६९-७०। एक समय विद्याधर ने नागपाश में बाँध कर इन्हें सरोवर में रोक दिया और ऊपर से पत्थर ढक दिया। तब इन्होंने मुष्टिप्रहार से उसके टुकड़े कर दिये।८२-८५। दीक्षा ले एक वर्ष का प्रतिमायोग धारण किया।१३१-१३२। अधोग्रैवेयक में अहमिन्द्र हुए।१४०-१४१। यह शान्तिनाथ भगवान् के पूर्व का चौथा भव है। देखें - शान्तिनाथ।
- म. पु.।५९। श्लोक−जम्बूद्वीप के चक्रपुर नगर के स्वामी राजा अपराजित का पुत्र था।२३९। राज्य प्राप्ति।२४५। दीक्षा धारण।२४६। प्रिंगुवन में एक भीलकृत उपसर्ग को सहनकर सर्वार्थसिद्धि में देव हुए।२७४। भील सातवें नरक में गया।२७६। संजयन्त मुनि के पूर्व का दूसरा भव है।−देखें - संजयन्त।