वसुदेव
From जैनकोष
ह.पु./सर्ग/श्लोक - अन्धकवृष्णि का पुत्र समुद्रविजय का भाई। (१८/१२)। बहुत अधिक सुन्दर था। स्त्रियाँ सहसा ही उस पर मोहित हो जाती थीं। इसलिए देश से बाहर भेज दिये गये जहाँ अनेक कन्याओं से विवाह हुआ। (सर्ग १९-३१) अनेक वर्षों पश्चात् भाई से मिलन हुआ। (सर्ग ३२) कृष्ण की उत्पत्ति हुई। (३५/१९)। तथा अन्य भी अनेक पुत्र हुए। (४८/५४-६५)। द्वार का जलने पर सन्यासधारण कर स्वर्ग सिधारे। (६१/८७-९१)।