वाकुस
From जैनकोष
भ.आ./वि./६०९/८०७/९ गिहिमत्तणिसेज्जवाकुसे लिंगो। गृहस्थानां भाजनेषु कुम्भकरकशरावादिषु कस्यचिन्निक्षेपणं, तैर्वा कस्यचिदादानं चारित्राचारः। = गिहिमत्तणिसेज्जवाकुसे अर्थात् गृहस्थों के भाजन अर्थात् कुम्भ, घड़ा, करक-कमण्डलु, शराब वगैरह पात्रों में से किसी पात्र में कोई पदार्थ रखे होंगे अथवा किसी को दिये होंगे ये सब चारित्राचार है ।