विक्षेप
From जैनकोष
न्या.सू./मू./५/२/१९ कार्यव्यासंगात्कथाविच्छेदो विक्षेपः। = जहाँ प्रतिवादी यों कहकर समाधान के समय को टाल देवे कि ‘मुझे इस समय कुछ आवश्यक काम है, उसे करके पीछे शास्त्रार्थ करूँगा’ तो इस प्रकार के कथाविक्षेप रूप निग्रहस्थान का नाम विक्षेप है। (श्लो.वा./४/१/१३/न्या/३६३/४२१/७) (नोट–श्लो.वा.में इसका निषेध किया गया है)