व्यसन
From जैनकोष
पं.वि./१/१६, ३२ द्यूतमांससुरावेश्याखेटचौर्यपराङ्गनाः । महापापानि सप्तेति व्यसनानि त्यजेद्बुधः ।१६। न परमियन्ति भवन्ति व्यवसनान्यपराण्यपि प्रभूतानि । त्यक्त्वा सत्पथमपथप्रवृत्तयः क्षुद्रबुद्धीनाम् ।३२। =
- जूआ, मांस, मद्य, वेश्या, शिकार, चोरी और परस्त्री, इस प्रकार ये सात महापापरूप व्यसन हैं । बुद्धिमान् पुरुष को इन सबका त्याग करना चाहिए । (पं.विं./६/१०); (वसु. श्रा./५९); (चा.पा./टी./२१/४३/पर उद्धृत); (ला.सं./२/११३) ।
- केवल इतने ही व्यसन नहीं हैं, किन्तु दूसरे भी बहुत से हैं । कारण कि अल्पमति पुरुष समीचीन मार्ग को छोड़कर कुत्सित मार्ग में प्रवृत्त हुआ करते हैं ।३२।
- अन्य सम्बन्धित विषय
- वेश्या व्यसन का निषेध ।– देखें - ब्रह्मचर्य / ३ ।
- परस्त्री गमन निषेध ।– देखें - ब्रह्मचर्य / ३ ।
- चोरी व्यसन ।–देखें - अस्तेय ।
- द्यूत आदि अन्य व्यसन ।–देखें - वह वह नाम ।
- वेश्या व्यसन का निषेध ।– देखें - ब्रह्मचर्य / ३ ।