शांतिसागर
From जैनकोष
आप दक्षिण देश के भोज ग्राम (बेलगाम) के रहने वाले थे। क्षत्रिय वंश से सम्बन्ध रखते थे। आपके पिता का नाम भीमगौड़ा और माता का नाम सत्यवती था। आपका जन्म आषाढ़ कृ.६ वि.सं.१९२९ को हुआ था। ९ वर्ष की अवस्था में आपका विवाह हो गया था परन्तु छह माह पश्चात् ही आपकी पत्नी का देहान्त हो गया। पुन: विवाह न कराया। सं.१९७२ में आपने देवेन्द्रकीर्ति मुनि से क्षुल्लक दीक्षा धारण कर ली। और सं.१९७६ में उन्हीं से मुनि दीक्षा ले ली। उस समय आपकी आयु ४७ वर्ष की थी। आपके चारित्र से प्रभावित होकर आपकी शिष्य मण्डली बढ़ने लगी। यहाँ तक कि जब आप वि.१९८४ में ससंघ सम्मेद शिखर पधारे तो आपके संघ में सात मुनि और क्षुल्लक व ब्रह्मचारी आदि थे। वर्तमान युग में आपके समान कठोर तपश्चरण करने वाला अन्य कोई हो सकेगा यह बात हृदय स्वीकार नहीं करता। आप वास्तव में ही चारित्र चक्रवर्ती थे।
इस कलिकाल में भी आपने आदर्श समाधिमरण किया है यह बड़ा आश्चर्य है। भगवती आराधना में उपदिष्ट मार्ग के अनुसार आपके १२ वर्ष की समाधि धारण की। सं.२००० (ई.१९४३) में आपने भक्त प्रत्याख्यान व्रत धारण कर लिया और १४ अगस्त सन् १९५५ में आकर कुन्थुलगिरि क्षेत्र पर इंगिनी व्रत धारण कर लिया। - १८ सितम्बर सन् १९५५ रविवार प्रात: ७ बजकर १० मिनट पर आप इस नश्वर देह को त्यागर स्वर्ग सिधार गये।
२४ अगस्त १९५५ को आप अपने सुयोग्य शिष्य वीरसागरजी को आचार्य पद देकर स्वयं इस भार से मुक्त हो गये थे। इस प्रकार आपका समय - (वि.१६७६-२०१२)(ई.१९१९-१९५५); (चा.सा./प्र./ब्र.श्रीलाल)।