श्रुतवाद
From जैनकोष
ध.१३/५,५,५०/२८७/१२ श्रुतं द्विविधं-अङ्गप्रविष्टमङ्गबाह्यमिति। तदुच्यते कथ्यते अनेन वचनकलापेनेति श्रुतवादो द्रव्यश्रुतम् । सुदवादो त्ति गदं। = श्रुत दो प्रकार का है - अंग प्रविष्ट और अंग बाह्य। इसका कथन जिस वचन कलाप के द्वारा किया जाता है वह द्रव्यश्रुत श्रुतवाद कहलाता है। इस प्रकार श्रुतवाद का कथन किया।