श्रेणिक
From जैनकोष
म.पु./७४/श्लोक सं.पूर्व भव सं.२ में खदीरसार नामक भील था।३८६। पूर्व भव में सौधर्म स्वर्ग में देव था (४०६) वर्तमान भव में राजा उपश्रेणिक का पुत्र था (४१४) मगधदेश का राजा था। उज्जैनी राजधानी थी। पहले बौद्ध था, पीछे अपनी रानी चेलना के उपदेश से जैन हो गया था। और भगवान् महावीर का प्रथम भक्त बन गया था। जिनधर्म पर अपनी दृढ़ आस्था के कारण इसे तीर्थंकर प्रकृति का बन्ध हो गया था। इसके जीवन का अन्तिम भाग बहुत दुखद बीता है, इसके पुत्र ने इसे बन्दी बनाकर जेल में डाल दिया था और उसके भय से ही इसने आत्महत्या कर ली थी, जिसके कारण कि यह प्रथम नरक को प्राप्त हुआ। और वहाँ से आकर अगले युग में प्रथम तीर्थंकर होगा। भगवान् वीर के अनुसार इसका समय वी.नि.२० वर्ष से १० वर्ष पश्चात् तक माना जा सकता है। ई.पू.५४६-५१६।