सर्वार्थसिद्धि विमान
From जैनकोष
१. अनुदिश तथा अनुत्तर स्वर्ग का इन्द्रक - देखें - स्वर्ग / ५ / ३ । २. ये देव केवल एक भवावतारी होते हैं। - देखें - स्वर्ग / २ / १ ।
रा.वा./४/१९/२/२२४/२२ सर्वार्थानां सिद्धेश्च।
रा.वा./४/२६/१/२४४/११ सर्वार्थसिद्ध इत्यन्वर्थनिर्देशात् । =३. सर्व अर्थों की अर्थात् सर्व प्रयोजनों की सिद्धि हो जाने से उनकी 'सर्वार्थसिद्धि' यह अन्वर्थ संज्ञा है।