सिद्धत्व
From जैनकोष
१-पं.ध.उ./११४२ सिद्धत्वं कृत्स्नकर्मेभ्य: पुंसोऽवस्थान्तरं पृथक् । ज्ञानदर्शनसम्यक्त्ववीर्याद्यष्टगुणात्मकम् ।११४२। =आत्मा की सम्पूर्ण कर्मों से रहित ज्ञान, दर्शन, सम्यक्त्व वीर्य आदि आठ गुण स्वरूप शुद्ध अवस्था का होना ही सिद्धत्व है। २-जीव का पारिणामिक भाव है-देखें - पारिणामिक ; ३-स्वभाव व्यंजन पर्याय है- देखें - पर्याय / ३ / ९ ।