सुप्रीतिक्रिया
From जैनकोष
गर्भान्वय की त्रेपन क्रियाओं में तीसरी क्रिया । यह क्रिया गर्भाधान के पश्चात् पाँचवें माह में की जाती है । इसमें मन्त्र और क्रियाओं को जानने वाले श्रावकों को अग्नि देवता की साक्षी में अर्हन्त की प्रतिमा के समीप उनकी पूजा करके आहुतियाँ देना पड़ती है । आहुतियां देते समय निम्न मन्त्र बोले जाते हैं―
अवतारकल्याणभागीभव, मन्दरेन्द्राभिषेककल्याणभागीभव, निष्कान्तिकल्याणभागीभव, आर्हन्त्यकल्याणभागीभव, परमनिर्वाणकल्याणभागीभव । महापुराण 38.51-55, 80-81, 40. 97-100