संसारी
From जैनकोष
- जीवों का एक भेद - देखें - जीव / १
- न.च.वृ./१०९ कम्मकलंकालीणा अलद्धससहावभावसब्भावा। गुणमग्गण जीवठिया जीवा संसारिणो भणिया।१०९। =कर्म कलंक से जो लिप्त हैं, स्वस्वभाव को जिन्होंने प्राप्त नहीं किया। गुणस्थान, मार्गणास्थान तथा जीवस्थान में जो स्थित हैं वे संसारी जीव कहे गये हैं।
पं.का./ता.वृ./१०९/१७४/१३ कर्मचेतनाकर्मफलचेतनात्मका: संसारिण:...अशुद्धोपयोगयुक्ता: संसारिण:। =कर्म व कर्मफलचेतनात्मक संसारी जीव हैं। ...संसारी जीव अशुद्धोपयोग से युक्त हैं।
पं.ध./उ./३४ बद्धो यथा स संसारी स्यादलब्धस्वरूपवान् । मूर्च्छितोऽनादितोऽष्टाभिर्ज्ञानाद्यावृतिकर्मभि:। =जो अनादिकाल से आठ कर्मों से मोहित होकर अपने स्वरूप को नहीं पाने वाला और बँधा हुआ वह संसारी जीव है।