स्थितिबन्ध प्ररूपणा-
१. मूलोत्तर प्रकृतियों की जघन्योत्कृष्ट आबाधा, व स्थिति तथा उनका स्वामित्व-(त.सू./८/१४-३०), (मू.आ./१२३७-१२३९), (पं.सं./प्रा./४/३९२-४४०), (पं.सं./सं./४/१९९-२५७), (शतक/५४-६४), (ध.६/१४६-१९८), (ध.१२/४९०-४९७), (म.ब./२/२४/१७), (गो.क./१२८-१३३,१३९-१४०,१२९-१३२,१४०-१४१), (गो.क./जी.प्र./२५२/५१९/२), (त.सा./५/४३-४६) संकेत– * =पल्य/असं.से हीन
क्रं० |
प्रकृति |
उत्कृष्ट |
जघन्य |
काल |
स्वामित्व |
काल |
स्वामित्व |
ध.६/पृ. |
ध.१२/पृ. |
आबाधा |
स्थिति |
पं.सं./प्रा./गा. |
गुणस्थान |
विवरण |
ध.६/पृ. |
गोम्मट्सार मूलाचार |
आबाधा |
स्थिति |
ध.६/पृ. |
पं.सं/प्रा./गा. |
विवरण |
|
|
|
|
सहस्र वर्ष |
को.को.सागर |
|
|
|
|
|
|
|
|
|
|
(१) |
ज्ञानावरणीय- |
|
|
मूल |
|
४८६ |
३ |
३० |
४३२ |
१ |
चारों गति उत.व मध्य संक्लेश |
|
गो०मू० |
अन्तर्मुहूर्त |
अन्तर्मुहूर्त |
|
४३३ |
सूक्ष्म साम्पराय |
१-५ |
पाँचों |
१४६ |
४८६ |
३ |
३० |
१ |
१ |
चारों गति उत. व मध्य संक्लेश |
१८२ |
|
अन्तर्मुहूर्त |
अन्तर्मुहूर्त |
१८३ |
४३३ |
सू.सा.क्षपक का अन्तिम समय |
(२) |
दर्शनावरणीय- |
|
१ |
मूल |
|
४८६ |
३ |
३० |
१ |
१ |
चारों गति उत. व मध्य संक्लेश |
|
गो.मू. |
अन्तर्मुहूर्त |
अन्तर्मुहूर्त |
|
४३३ |
सूक्ष्म साम्पराय |
१ |
निद्रानिद्रा |
१४६ |
|
३ |
३० |
१ |
१ |
चारों गति उत. व मध्य संक्लेश |
१८४ |
गो.मू. |
अन्तर्मुहूर्त |
३/७सा* |
१८४ |
४३४ |
सर्व विशुद्ध बादर एकेन्द्रिय पर्याप्त |
२ |
प्रचलाप्रचला |
१४६ |
|
३ |
३० |
१ |
१ |
चारों गति उत. व मध्य संक्लेश |
१८४ |
|
अन्तर्मुहूर्त |
३/७सा* |
१८४ |
४३४ |
सर्व विशुद्ध बादर एकेन्द्रिय पर्याप्त |
३ |
स्त्या.गृद्धि. |
१४६ |
|
३ |
३० |
१ |
१ |
चारों गति उत. व मध्य संक्लेश |
१८४ |
|
अन्तर्मुहूर्त |
३/७सा* |
१८४ |
४३४ |
सर्व विशुद्ध बादर एकेन्द्रिय पर्याप्त |
४ |
निद्रा |
१४६ |
|
३ |
३० |
१ |
१ |
चारों गति उत. व मध्य संक्लेश |
१८४ |
|
अन्तर्मुहूर्त |
३/७सा* |
१८४ |
४३४ |
सर्व विशुद्ध बादर एकेन्द्रिय पर्याप्त |
५ |
प्रचला |
१४६ |
|
३ |
३० |
१ |
१ |
चारों गति उत. व मध्य संक्लेश |
१८४ |
|
अन्तर्मुहूर्त |
३/७सा* |
१८४ |
४३४ |
सर्व विशुद्ध बादर एकेन्द्रिय पर्याप्त |
६ |
चक्षु.द. |
१४६ |
|
३ |
३० |
१ |
१ |
चारों गति उत. व मध्य संक्लेश |
१८२ |
|
अन्तर्मुहूर्त |
अन्तर्मुहूर्त |
१८३ |
४३३ |
सू.सा.क्षपक का अन्तिम समय |
७ |
अचक्षु, द. |
१४६ |
|
३ |
३० |
१ |
१ |
चारों गति उत. व मध्य संक्लेश |
१८२ |
|
अन्तर्मुहूर्त |
अन्तर्मुहूर्त |
१८३ |
४३३ |
सू.सा.क्षपक का अन्तिम समय |
८ |
अवधि |
१४६ |
|
३ |
३० |
१ |
१ |
चारों गति उत. व मध्य संक्लेश |
१८२ |
|
अन्तर्मुहूर्त |
अन्तर्मुहूर्त |
१८३ |
४३३ |
सू.सा.क्षपक का अन्तिम समय |
९ |
केवल द. |
१४६ |
|
३ |
३० |
१ |
१ |
चारों गति उत. व मध्य संक्लेश |
१८२ |
|
अन्तर्मुहूर्त |
अन्तर्मुहूर्त |
१८३ |
४३३ |
सू.सा.क्षपक का अन्तिम समय |
(३) |
वेदनीय- |
|
१ |
मूल |
|
|
३ |
३० |
४३२ |
१ |
चारों गति उत. व मध्य संक्लेश |
१८२ |
गो.मू. |
अन्तर्मुहूर्त |
१२ मुहूर्त |
१८३ |
|
|
१ |
साता |
१५८ |
४८७ |
१File:Image/460-468/clip image002.gif
२. इन्द्रिय मार्गणा की अपेक्षा प्रकृतियों का उ.ज.स्थिति की सारणी - (रा.वा./८/१४-२०); (म.ब.२/२४/१७-२९); (ध.६/१९६)।
क्र. |
प्रकृति |
एकेन्द्रिय |
द्वीन्द्रिय |
त्रीन्द्रिय |
चतुरिन्द्रिय |
असंज्ञी पंचेन्द्रिय |
संज्ञी पंचेन्द्रिय |
उत्कृष्ट |
जघन्य |
उत्कृष्ट |
जघन्य |
उत्कृष्ट |
जघन्य |
उत्कृष्ट |
जघन्य |
उत्कृष्ट |
जघन्य |
उत्कृष्ट |
जघन्य |
|
|
सागर |
सागर |
सागर |
सागर |
सागर |
सागर |
सागर |
सागर |
सागर |
सागर |
सागर |
अन्तर्मुहूर्त |
१ |
ज्ञानावरणीय |
३/७ |
३/७-पल्य/सं. |
७५/७ |
७५/७-पल्य/सं. |
१५०/७ |
File:Image/460-468/clip image016.gif
३. उत्कृष्ट व जघन्य स्थिति, प्रदेश व अनुभाग के बन्धकों की प्ररूपणा-
१. सारणी में प्रयुक्त संकेतों का अर्थ
- मारणान्तिक समुद्घात रहित सप्तम पृथिवी की ५०० धनुष अवगाहना वाला अन्तिम समयवर्ती गुणित कर्मांशिक नारकी।
- सप्तम पृथिवी के प्रति मारणान्तिक समुद्घात गत महामत्स्य।
- सूक्ष्म साम्पराय के अन्तिम समय तथा आगे के सर्वस्थान।
- द्विचरम वा त्रिचरम समय के पहले अन्तर्मुहूर्त काल तक स्थित सप्तम पृथिवी का मिथ्यादृष्टि नारकी।
- लोकपूर्ण समुद्घात गत केवली।
- पूर्वकोटि के त्रिभाग प्रमाण आयु की आबाधा करके सप्तम नरक की आयु बाँधने वाला महामत्स्य।
- उत्कृष्ट मनुष्यायु सहित आयु बन्ध के प्रथम समय गत प्रमत्त संयत/७-११ गुणस्थान मनुष्य यदि पूर्व कोटि के त्रिभाग में देवायु को बाँधे।
- त्रिसमयवर्ती आहारक व तद्भवस्थ होने के तृतीय समय में वर्तमान जघन्य योगवाला सूक्ष्म निगोद लब्ध्यपर्याप्त जीव।
- क्षपित कर्मांशिक क्षीणकषायी १२वें गुणस्थान के अन्तिम समयवर्ती संयत।
- चरम समयवर्ती क्षपित कर्मांशिक अयोग केवली।
- चरम समयवर्ती सामान्य कर्मांशिक अयोग केवली।
- असाता वेदनीय के उदय सहित क्षपक श्रेणी पर चढ़ा हुआ अन्तिम समयवर्ती अयोग केवली।
- संज्ञी पंचेन्द्रिय पर्याप्तक ५०० धनुष अवगाहना वाला यदि तिर्यंच आयु बाँधे, नारकी जीव तेतीस सागर के भीतर असं-गुणहानियों को गलाकर दीपशिखाकार से स्थित। (ध.१२/४६२/१७)।
- तिर्यंचायु बाँधने वाला अपर्याप्त।
- क्षपित कर्मांशिक सर्वविशुद्ध सूक्ष्म निगोद त्रि चरमसमय स्थित।
- बादर तेज व वायुकायिक पर्याप्त।
ध.१२/४,२,१३,७/पृ.सं. |
प्रकृति |
द्रव्य प्रदेशबन्ध |
क्षेत्र बन्धक जीव की अवगाहना |
काल बन्ध की स्थिति |
भाव अनुभाग |
प्रमाण |
ज. |
उ. |
प्रमाण |
ज. |
उ. |
प्रमाण |
ज. |
उ. |
प्रमाण |
ज. |
उ. |
ज्ञानावरणी |
३७७-४४६ |
९ |
१ |
३८१ |
८ |
२ |
३८७ |
९ |
१ |
३९१ |
९ |
४ |
दर्शनावरणी |
३९५ |
९ |
१ |
३९५ |
८ |
२ |
३९५ |
९ |
१ |
३९५ |
९ |
४ |
वेदनीय |
३९६-४४६ |
१० |
१ |
३९७ |
८ |
५ |
४०१ |
११ |
१ |
४०२ |
१२ |
३ |
मोहनीय |
३९५ |
९ |
१ |
३९५ |
८ |
२ |
३९५ |
९ |
१ |
३९५ |
९ |
४ |
आयु |
४०५ |
१३ |
६ |
४०५ |
८ |
५ |
४०९ |
१० |
७ |
४११ |
१४ |
७ |
नाम |
४०४ |
११ |
१ |
४०४ |
८ |
५ |
४०४ |
११ |
१ |
४०४ |
१५ |
३ |
गोत्र |
४०४ |
११ |
१ |
४०४ |
८ |
५ |
४०४ |
११ |
१ |
४०४ |
१६ |
३ |
अन्तराय |
३९५ |
९ |
१ |
३९५ |
८ |
२ |
३९५ |
९ |
१ |
३९५ |
९ |
४ |
४. अन्य प्ररूपणाओं सम्बन्धी सूची-(म.बं./पृ.सं./<img height="37" src="image/469-477/clip_image002.gif" width="20"> )
क्रं. |
प्रकृति |
मूल वा उत्तर |
विषय |
भिन्न-भिन्न पदों की अपेक्षा प्रमाण |
संख्यात भागआदि वृद्धि |
ज.उ.स्थिति |
भुजगारादि पद |
१ |
अष्ट कर्म |
मूल |
सन्निकर्ष |
२/<img height="30" src="image/469-477/clip_image003.png" width="41"> |
|
|
|
|
|
भंग विचय |
३/<img height="30" src="image/469-477/clip_image006.gif" width="41"> |
२/<img height="31" src="image/469-477/clip_image008.gif" width="41"> |
२/<img height="31" src="image/469-477/clip_image010.gif" width="41"> |
|
|
उत्तर |
सन्निकर्ष |
३/<img height="30" src="image/469-477/clip_image012.gif" width="29"> |
|
|
|
|
|
भंगविचय |
३/<img height="30" src="image/469-477/clip_image014.gif" width="41"> |
३/<img height="30" src="image/469-477/clip_image016.gif" width="41"> |
३/<img height="30" src="image/469-477/clip_image018.gif" width="41"> |
नोट-साता असाता के द्वि त्रि चतु.स्थानीय अनुभाग बन्धक जीवों की अपेक्षा ज.उ.स्थिति बन्ध का स्वामित्व व उनका अल्पबहुत्व = (ध.११/३१६-३३२) |
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